PAPER ID: IJIM/Vol. 9 (X) /February/1-8/1
AUTHOR: डॉ॰ गजानन्द वानखेड़े [i] (Dr. Gajanand Wankhere ) रघुनन्दन जोशी [ii] (Raghunandan Joshi)
TITLE : आधुनिक जीवन में मंत्र योग की उपादेयता
ABSTRACT: योग का अर्थ है, ईश्वर के साथ जुड़ना या मिलना। साधना की दृष्टि से योग के भी अलग -अलग प्रकार बताये गये हैं- ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग, राजयोग, तंत्रयोग, हठयोग आदि; उसी प्रकार मंत्र योग भी है। मंत्र की साधना द्वारा ईश्वर को प्राप्त करना मंत्र योग कहलाता है। मंत्र योग की साधना में मुख्य रूप से तीन तत्वों का समावेश होना अनिवार्य है- शब्दों का गठन, साधक का व्यक्तित्व एवं तथ्य को अन्तःकरण की गहराई तक पहुँचा देने वाला अविचल विश्वास। मंत्र उच्चारण में इन तीन तत्वों का समावेश हो जाने से मंत्र योग बन जाता है। इस प्रकार मंत्र योग की साधना करने से मंत्र योग सिद्ध हो जाता है। मंत्र विशेषज्ञों, ऋषि मुनियों तथा तपस्वीयों ने अपनी दीर्घकालीन खोजों के परिणामस्वरूप मंत्र योग के सोलह अंग निश्चित किये हैं- भक्ति, शुद्धि, आसन, पंचांग सेवन, आचार, यज्ञ, बलि, धारणा, ध्यान, दिव्य देश सेवन, मुद्रा जप, प्राण प्रक्रिया, तर्पण, याग एवं समाधि। मंत्र के इन सोलह अंगो का श्रद्धापूर्वक अभ्यास करने से मंत्र योग सिद्ध हो जाता है तथा साधक को इसका पूर्णतः लाभ प्राप्त होता है।
KEYWORDS: मंत्र, योग, भक्ति, शुद्धि, आसन, पंचांग सेवन, आचार, धारणा, दिव्य देश सेवन, प्राण प्रक्रिया, मुद्रा, तर्पण, हवन, बलि, जप, ध्यान, याग, समाधि।