PAPER ID: IJIM/Vol. 9 (VII) November/32-36 /5
AUTHOR: ज्योति पैन्यूली[I] डॉ० ममता शर्मा[II]
TITLE: कैवल्य प्राप्ति में श्रीमद्भगवद्गीता में निहित ज्ञानयोग की उपादेयता
ABSTRACT: प्रायः सभी योग आत्मोत्थान के साधन माने जाते हैं। भगवद्गीता, उपनिषद्, वेद और अन्य शास्त्र चित्त या मन को वश में करने पर जोर देते हैं। गीता के अनुसार, ज्ञानयोग आत्म-तत्त्व की अमरता और देह-तत्त्व की नश्वरता को समझने का माध्यम है। यह आत्मा और परमात्मा के अद्वैत भाव को स्थापित करता है। ज्ञानयोग में भक्ति और ज्ञान का समन्वय आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है। मन, बुद्धि और इन्द्रियों को नियंत्रित कर परम-तत्त्व में स्थिरता ज्ञानयोग का प्रमुख उद्देश्य है। संशय रहित, श्रद्धावान व्यक्ति ही ज्ञानयोग से मोक्ष प्राप्त कर सकता है। गीता में इसे सबसे पवित्र मार्ग बताया गया है, जो व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से स्थायी शांति प्रदान करता है।
KEYWORDS: ज्ञानयोग, आत्म-तत्त्व भगवद्गीता, तत्त्व-मीमांसा, संशय-निवारण, आत्मोत्थान, मोक्ष, भक्ति और ज्ञान चित्त और इन्द्रिय-नियंत्रण , त्रिगुणातीत अवस्था
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