PAPER ID: IJIM/Vol. 9 (II) June 2024/7-10/2
AUTHOR: डॉ ममता शर्मा (Dr. Mamta Sharma[I], शुभम (Shubham)[II]
TITLE: परमहसं योगानंद द्वारा विकसित क्रिया योगसाधना पद्धतिका विवेचनात्मक अध्ययन (Paramhans yoganand dwara viksit kriya yogsadhna padhtika vivechantmak adyayan)
ABSTRACT: आत्मोत्कर्ष प्रदायक योगविद्या का प्रचलन भारत देश व सनातन संस्कृति में आदि काल से चला आ रहा है। ऋषि-मुनियों, साधको व वैरागियों ने आदि से वर्तमान काल तक योग विद्या से जुड़कर इसे बढ़ावा दिया जिसके कारण यह 21वीं शताब्दी में भी आम जन के बीच में काफी लोकप्रिय है। इसी प्रकार परमहंस योगानंद जी को महान योगी लीहिड़ी महाय जी से क्रिया योग की दीक्षा प्राप्त हुई जिसका प्रसार उन्होने लाखों लोगों में किया। उन्होने पश्चिमी देशोेें में जाकर अपने योग में ध्यान और क्रिया योग को बहुत अधिक प्रसार किया। क्रिया योग आत्म-ज्ञान व आध्यात्मिकता को प्राप्त करने का सर्वोत्त्म तरीका है। क्रिया योग अभ्यास करने के फलस्वरूप आत्म साक्षात्कार व परमात्मा की प्राप्ति होती है। क्रिया योग कुंडलिनी जागरण या आध्यात्मिक ऊर्जा को जगाने का कार्य करता है इसके नियमित अभ्यास से आंतरिक शक्ति, आनन्द व परमात्मा की प्राप्ति होती है। इस प्रकार क्रिया योग एक वैज्ञानिक प्रणाली है जिसका कार्य ईश्वर की प्राप्ति आत्म-साक्षात्कार व यथार्थ ज्ञान हेतु होता है। इस प्रकार परमहंस योगानंद की दृष्टि में योग कठिन आसन व प्राणयाम करना भी नहीं है बल्कि ईश्वर के प्रति निष्काम भाव से आत्मसमर्पण करना तथा मानसिक शिक्षा द्वारा स्वयं को दैवीस्वरूप में परिणत करना है।
KEYWORDS: योग, क्रियायोग, स्वास्थ्य।
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