PAPER ID: IJIM/Vol. 9 (IV) August 2024/11-14/3
AUTHOR: दीक्षा (Diksha)
TITLE: पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकताः एक विचार (Prithvi Rasso ki parmanikta ek vichar)
ABSTRACT: पृथ्वीराज रासो को हिन्दी साहित्य का पहला महाकाव्य माना जाता है, जिसकी रचना चंदबरदाई ने की थी। यह महाकाव्य मुख्य रूप से पृथ्वीराज चैहान के जीवन और चरित्र पर केंद्रित है, जिसमें उनके युद्धों का वीरता और श्रृंगार रस के साथ सजीव वर्णन किया गया है। यद्यपि यह कृति अत्यधिक प्रतिष्ठित है, परंतु इसकी प्रामाणिकता पर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। प्रारंभ में इसे प्रामाणिक माना जाता था, लेकिन जयानक कवि द्वारा रचित ”पृथ्वीराज विजय” की खोज के बाद इसकी प्रामाणिकता को चुनौती दी गई। ‘रासो‘ शब्द संस्कृत की ‘रास‘ धातु से बना है, जो समूह नृत्य और गीत से संबंधित रचनाओं के लिए प्रयोग किया जाता है। विद्वानों का एक वर्ग इसे अप्रमाणिक मानता है, जो घटनाओं, कालक्रम, और भाषा की असंगतियों के आधार पर इसे सिद्ध करता है, जबकि दूसरा वर्ग इसे प्रामाणिक मानता है और मानता है कि इसमें बाद में कुछ अंश जोड़े गए हैं। यह विवाद आज भी इस महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति की समझ को प्रभावित करता है।
KEYWORDS: पृथ्वीराज रासो, चंदबरदाई, हिन्दी साहित्य, महाकाव्य, प्रामाणिकता विवाद, जयानक, पृथ्वीराज चैहान, रासो, मध्यकालीन भारतीय साहित्य।
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