PAPER ID: IJIM/Vol. 9 (III) July 2024/64-68/10
AUTHOR: सुमित रंगा (Sumit Ranga)
TITLE: हरियाणवी लोकगीतों का बदलता स्वरूप (Haryanvi lokgeeton ka badlta swaroop)
ABSTRACT: हरियाणा को बहुधान्य भूमि कहा गया है, जहाँ मवेशियों की धवल दुग्धधारा सदैव प्रवाहित होती रही है। हरियाणवी संस्कृति में दूध और दही का प्रमुख स्थान है, जिसे लोकगीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। लोकगीत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं और प्राचीन काल से चली आ रही समृद्ध परंपरा का हिस्सा हैं। ये गीत जनसाधारण की भावनाओं, रीति-रिवाजों और रहन-सहन का प्रतिबिंब होते हैं। लोकगीतों की सौंधी महक जनमानस को सदैव आह्लादित करती है। लोकगीत और सामान्य गीतों में अंतर होता है; लोकगीत जनसाधारण की आंतरिक भावनाओं का प्रतीक होते हैं और इन्हें ठेठ भाषा में गाया जाता है। लोकगीतों का वर्गीकरण पौराणिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्व संबंधी और पर्यावरण संबंधी गीतों में किया जाता है।
KEYWORDS: हरियाणा, लोकगीत, बहुधान्य भूमि, संस्कृति, लोकसंस्कृति, जनसाधारण
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