PAPER ID: IJIM/Vol. 8 (VIII) December 2023/6-10/2
AUTHOR: डॉ0 जन्मेजय [1] , ध्रुब सिंह नेगी [2]
TITLE:योगसूत्र एवं औपनिषदिक नियम के स्वरूप का विवेचन (Yogsutr aivm oopnishad niyam ke sawarup ka vivechan)
ABSTRACT: महर्षि पंतजलि कृत योगसूत्र में वर्णित अष्टांग योग अत्यन्त प्रचलित एवं श्रेष्ठ साधना प¬द्धति है; जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि इन आठ अंगों का सारगर्भित वर्णन किया गया है। यम अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह का पालन सार्वभौमिक है, जिसमें हमारी वयैक्तिक, नैतिक, सामाजिक, वैश्विक उन्नति के मूल्य अन्तर्निहित है। जबकि नियम- शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान है। जो हमारे शारीरिक मानसिक स्तर पर नियन्त्रण कर व्यक्तिगत रूप से उत्थान में सहायता प्रदान करता है। इन नियमों के पालन से हम मनोशारीरिक रूप से अष्टांग योग के उत्तरोत्तर अंगो के पालन में क्रमशः सफल हो सकते है योगसूत्र के अतिरिक्त उपनिषदों में भी नियम का वर्णन प्राप्त होता है। योगसूत्र में 5 नियम का वर्णन किया गया है जबकि उपनिषदों में 10 नियम का वर्णन प्राप्त होता है। अतः हमें अपने आत्मिक उत्थान के लिए इन नियमों के स्वरूप का जानना परम आवश्यक हो जाता है। उपनिषदों के समान ही वशिष्ठ संहिता एवं अन्य योग शास्त्र्ाों में दस-दस नियमों का प्राप्त वर्णन औपनिषदिक नियम के स्वरूप को प्रमाणिकता प्रदान करता है। अष्टांग योग साधना में इन नियमों को सम्मिलित कर हम अपनी योग साधना को और अधिक उत्कृष्ट बना सकते है।
KEYWORDS: योगसूत्र वर्णित नियम, औपनिषदिक नियम।
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