PAPER ID: IJIM/Vol. 8 (VIII) December 2023/ 25-29/5
AUTHOR: डॉं0 दीपक कुमार
TITLE:अष्टांग योग द्वारा व्यक्तित्व विकास (Ashtang yog dawara vayktitav vikas)
ABSTRACT: व्यक्तित्व का अर्थ है शरीर, मन और आत्मा। व्यक्ति के विकास की प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक चलती रहती है। मानव शरीर में जन्म से ही कुछ संस्कार होते हैं। इन्हीं संस्कारों से मनुष्य समाज के बीच में रहता है। इस प्रकार व्यक्ति का व्यक्तित्व जन्म से ही उसके संस्कारों और सामाजिक प्रभावों के कारण अद्वितीय होता है। प्रत्येक व्यक्ति की समानता और विशिष्टता पर मनोवैज्ञानिकों के बीच दो प्रकार के विचार हैं- आनुवंशिक और पर्यावरण। शरीर के अलावा, व्यक्तित्व का हिस्सा आत्मा है। आत्मा तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को मन के माध्यम से अपनी आंतरिक यात्रा करनी पड़ती है अर्थात अष्टांग योग के द्वारा व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा पर विजय प्राप्त की जाती है, जिससे व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से समग्र व्यक्तित्व का विकास होता है।
सामान्यतः व्यक्तित्व से अभिप्राय व्यक्ति के रंग-रूप, कद, शारीरिक संरचना तथा व्यवहार आदि से होता है। आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र के साथ साथ अपना व्यक्तित्व भी अच्छा रखें। क्योंकि व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में सफलता से व्यक्तित्व को भूल जाता है जिससे वह उचित व अनुचित की परिभाषा भूल जाता है। अधिकांशतः व्यक्ति जीवन में सफलता के बाद अहंकार को ग्रहण कर लेता है। इस अहंकार को दूर करने के लिए और व्यक्तित्व को अच्छा करने के लिए अष्टांग योग सर्वोत्तम है।
KEYWORDS: व्यक्ति, व्यक्तित्व विकास और अष्टांग योग।