PAPER ID: IJIM/Vol. 9 (VII) November/37-44 /6
AUTHOR: डॉ० अरविन्द वैदवान[I] माधुरी[II]
TITLE: योग के सन्दर्भित ग्रन्थों में निहित स्वाध्याय शब्द का अर्थानुशीलन
ABSTRACT: तप’ हमारे शरीर को शुद्ध करते हुए उसे शक्ति प्रदान करता है। शक्ति और शुचिता प्राप्त करना ही ‘तप’ का उद्देश्य है; परन्तु तप मनुष्य को अहंकारी भी बना सकता है। इसलिए महर्षि पतंजलि ने ‘तप’ के उपरान्त स्वाध्याय का सूत्र दिया है। स्वाध्याय का मतलब है स्वयं का अध्ययन या अवलोकन करना। कार्यों के पीछे हमारा क्या उद्देश्य है? इस पर ध्यान देना।
स्वाध्याय का अर्थ है आत्म-स्वीकृति और आत्म-विश्लेषण। यह हमें अपनी कमियों को पहचानने और उन्हें दूर करने में मदद करता है। गायत्री मंत्र का मनन और सत्-शास्त्रों का अध्ययन स्वाध्याय के महत्वपूर्ण अंग हैं।
अन्तर्बोध स्वाध्याय का सूक्ष्म मार्ग है, जो हमें आत्म-प्रकृति के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में मदद करता है। गहन सजगता और आत्म-विश्लेषण स्वाध्याय के माध्यम से हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाते हैं।
इस प्रकार, स्वाध्याय और अन्तर्बोध के माध्यम से हम सत्य के मार्ग पर चलकर आत्मसाक्षात्कार कर सकते हैं।
KEYWORDS: तप, स्वाध्याय, महर्षि पतंजलि, गायत्री मन्त्र, अन्तर्बोध, गहन सजगता , आत्म-विश्लेषण
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