PAPER ID:IJIM/V.7(II)/1-7/1
AUTHOR: Dr. Manju
TITLE : हरियाणा की प्रशासनिक व्यवस्था (1803-1858)
( Haryana ki prashsnik vyvastha (1803-1858)
ABSTRACT : हरियाणा 19वीं शताब्दी के शुरूआत तक मुगल साम्राज्य में शामिल था। 30 दिसम्बर 1803 को सुर्जीअंजन गाँव की सन्धि के तहत दौलतराव सिंधिया ने इस क्षेत्र को ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंप दिया था। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र को प्रशासकीय सुविधा के लिए दो भागों में बांट दिया था। एक भाग ‘असाईंड टेरिटरी’ जो सीधे कम्पनी शासन के अधीन था और बाकी का सामन्तों को दे दिया था। 1809 के पश्चात् प्रशासनिक व्यवस्था को बदलकर रेजीडेंट के अधीन कर दिया गया। 1819 ई॰ में नागरिक प्रशासन एक आयुक्त को दे दिया गया और असाईंड टेरिटरी को तीन मंडलों में संगठित किया गया, जिनका कार्यभार आयुक्त के सहायक संभालते थे। 1825 ई॰ में नागरिक प्रशासन फिर से रेजीडेंट को दे दिया गया, लेकिन चार साल बाद द्विविभाजन फिर से जरूरी हो गया। यह प्रशासनिक व्यवस्था 1833 ई॰ तक चली। इसके पश्चात् भारत में ब्रिटिश अधिकारिक क्षेत्रों को दो भागों में बंगाल और उत्तर-पश्चिमी प्रांत में बांट दिया गया। उत्तर-पश्चिमी प्रांत की छह मंडलों में से एक दिल्ली मंडल में इस क्षेत्र के छह जिलों को मिलाया गया, जो एक जिला न्यायाधीश व उप-समाहर्ता के अधीन थे। इस तरह पुरानी व नई प्रशासकीय व्यवस्थाओं का मिलाजुला रूप 1857 की क्रांति तक इसी तरह बरकरार रहा। पर 1857 के पश्चात् इस क्षेत्र को पुनर्गठित किया गया और 1858 के एक्ट 38 के अनुसार यह प्रदेश उत्तर-पश्चिमी प्रान्त से कट कर पंजाब का हिस्सा बना। इस व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कर पंजाब सरकार द्वारा इस क्षेत्र पर भी ‘पंजाब शासन प्रणाली’ लागू कर दी गई जो सन् 1966 तक जब हरियाणा पंजाब से पृथक् हुआ तब तक चली।