PAPER ID:IJIM/V.5(VI)/1-9/1
AUTHOR: Janmejay
TITLE : हृदय रोग के प्रबन्ध में योग–चिकित्सीय सिद्धान्त( Haridya Rog ke Prabandh Main Yog- Chikitsay Sidhant)
ABSTRACT:हृदय हमारे जीवन और सुस्वास्थ्य की मुख्य कड़ी है, जो टूटती जा रही है। ’हृदय रोग’ को आधुनिक युग की महामारी कहा गया है क्योंकि वर्तमान युग में व्यक्ति हृदय रोग से अधिकतम् पीड़ित हो रहे है। हृदय रोग के मूल में कारणीय तत्त्व मनोकायिक माने गये है। हृदय रोग केवल शारीरिक कारणों से नहीं होता है, बल्कि इसमें मानसिक कारण भी सम्मिलित होते है। इसके अतिरिक्त विकृत जीवन शैली, विकृत आहारीय नियमावली, विकृत आचरण (यम-नियम रहित आचरण), इत्यादि भी हृदय रोग वृद्धि में कारणीय तत्त्व है। इन सभी हृदय रोग सम्बन्धी कारणीय तत्त्वों के निवारण हेतु योग-चिकित्सीय सिद्धांतो का पालन करना अति आवश्यक हो जाता है। योग चिकित्सा के अन्तर्गत षट्कर्म, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, शिथिलीकरण अभ्यास एवं उचित आहार नियमावली के सिद्धान्त हृदय रोग सम्बन्धी कारणीय तत्त्वों को दूर कर हृदय के स्वास्थ्य में सहायक सिद्ध होते है। योग चिकित्सा के माध्यम से हृदय रोग सम्बन्धी मनोकायिक कारणीय तत्त्वों को नियन्त्रित कर उन्हें दूर करने में योगदान किया जा सकता है, क्योंकि योग चिकित्सा का मनोकायिक चिकित्सीय प्रभाव पड़ता है, यह सिद्ध हो चुका है। अतः हृदय रोग के प्रबन्धन में योग-चिकित्सीय सिद्धान्तों का प्रभाव अत्यन्त प्रभावी सिद्ध हो सकता है।
KEYWORDS:- हृदय रोग, योग चिकित्सीय सिद्धान्त।