PAPER ID:IJIM/V.I(VIII)/79-85/13
AUTHOR:सुमन रानी
TITLE:नासिरा शर्मा के उपन्यासों की भाषा शैली
ABSTACT:नासिरा शर्मा हिन्दी कथा साहित्य की माननीय एवं उभरती हुई लेखिकाओं में से एक हैं। वे कहानी और उपन्यास के अतिरिक्त रिपोर्ताज, अनुवाद, लेख और कुछ फुटकल कविताएँ भी लिखती हैं किन्तु कथा-साहित्य के क्षेत्र में उनकी विशेष रुचि होने के कारण इस क्षेत्र में उनको विशेष योगदान रहा है। अतः नासिरा शर्मा के सम्पूर्ण कथा साहित्य में समाज के यथार्थ परिवेश की सत्यता की तस्वीर शर्मा के सम्पूर्ण कथा साहित्य में समाज के यथार्थ परिवेश की सत्यता की तस्वीर स्पष्ट झलकती है। इसमें आम जनता के जीवन-यापन की विसंगतियों को उजागर किया गया है क्योंकि जब तक इनको संत्रासभरी जिन्दगी से छुटकारा नहीं मिलेगा तब तक वह पीड़ा झेलने की मानसिकता में ही जीवन व्यतीत करेंगे। नासिरा शर्मा की भाषा उनके भावों और उद्देश्यांे की वाहिका है। उन्होंने अपने उपन्यासों में पात्रों का स्तर एवं उनकी परिस्थिति के अनरूप ही भाषा का अवलम्बन किया है। अतः उनकी शिक्षा फारसी में होने के कारण अरबी और फारसी शब्दों की भरमार दिखाई देती है, लेकिन पाठकों को कहीं भी इसकी कठिनाई महसूस नहीं होती है, क्योंकि उनका आरम्भिक जीवन इलाहाबाद में गुजरा है। अतः इलाहाबादी सभ्यता की मिठास और बोलचाल की साधारण गली मौहल्ले की भाषा से लेकर शिक्षित वर्गों की विविध स्तरीय भाषा के साथ कहीं ब्रज का पुट देने में नासिरा शर्मा अद्भुत क्षमता रखती है। नासिरा शर्मा के उपन्यासों में भाषा के विभिन्न्ा रूप देखने को मिलते हैं, जिससे इनके उपन्यासों की भाषा बड़ी ही सुदृढ़, सरल और प्रभावशाली दिखलाई देती है। इससे पाठक नासिरा शर्मा के उपन्यासों से पढ़ता हुआ एकाकार सम्बन्ध स्थापित कर लेता है।
KEYWORDS:अवलम्बन, सघन, लोकगंध, अल्पाज, खफा, अलकय, गायस