PAPER ID:IJIM/V.6(XII)/ 1-9/1
AUTHOR: Dr. Deepak Kumar
TITLE: ‘पतंजलि प्रणीत चित्तवृत्ति निरोध के उपायों की विवेचना’
ABSTRACT: महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में योग की दार्शनिकता को बहुत ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन में योग की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि चित्त की वृत्तियों को रोक लेना ही योग है। यही योग दर्शन का मूल आधार है। मनुष्य का मन चंचल होने के कारण वह इस सांसारिक मोह माया में भटकता रहता है। जिससे वृत्तियां एकाग्र नहीं हो पाती है। इन्हीं वृत्तियों को एकाग्र करने के लिए महर्षि पतंजलि ने अभ्यास-वैराग्य, क्रिया योग और अष्टांग योग, ये तीन मार्ग बताए है। इन तीन मार्गों के आधार पर साधकों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम श्रेणी में रखा है। इन सभी मार्गों के पालन से साधक ईश्वर का साक्षात्कार कर लेता है अर्थात् साधक स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर हो जाता है। वह भौतिकवादी दृष्टिकोण को समाप्त कर आत्म तत्व को प्राप्त करता है जिससे साधक कैवल्य को प्राप्त कर लेता है। अतः साधकों को उपर्युक्त कहे गए चित्तवृत्ति के उपायों का श्रद्धा पूर्वक सांगोपान करना चाहिए।
KEYWORDS: अभ्यास-वैराग्य, क्रियायोग और अष्टांग योग।