PAPER ID:IJIM/V.I(VII)/50-56/9
AUTHOR: डॉ. शालू
TITLE:समकालीन हिन्दी कविता पर सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव और मानव मूल्य
ABSTRACT: प्रस्तुत शोध पत्र में समकालीन हिन्दी कविता पर सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव और मानव मूल्यों का अध्ययन किया गया है। समकालीन शब्द लगाते ही उससे अपने समय की सच्चाइयों और सामाजिक परिवर्तन की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है। सच तो यह है कि हिन्दी कविता में समकालीन हिन्दी कविता का यह दौर समय की विसंगतियों और असंतोष को अभिव्यक्ति देने के लिए जाना जाता है। यही इसका सौन्दर्य, शक्ति और सीमाएं हैं। कविताओं में सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में पाश्चात्य जीवन शैली और विचारों के परिवर्तन को कवियों ने सशक्त अभिव्यक्ति दी है। समय के साथ-साथ समकालीन कविता के मुहावरे और कथ्य में भी अभूतपूर्व परिवर्तन दिखाई देता है। मनुष्य की बेचैनी और उसकी द्वंद्वात्मक मानसिकता को सूक्ष्मता के साथ जस का तस रख देने की विशेष दृष्टि इन कविताओं की ताकत है।
Keywords: प्रपंच, वितृष्णा, अर्राकर, स्वहित, बेपैंदा, पुर्नस्थापना